Thursday, 15 June 2017

काली दुनिया का भगवान- रीमा भारती (धीरज पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित)



पढ़िए सेक्स, रोमांच, एक्शन और सस्पेंस से भरपूर "नॉवेल काली दुनिया का भगवान "

भारत के मित्र राष्ट्र मडलैंड के राष्ट्रपति सर अडोल्फ़ का तख्ता पलट कर उनके पद से हटा दिया गया था। सर अडोल्फ़ गायब थे और उनका पता जानने के लिये उनके दायें हाथ डगलस को सेना ने बंदी बना लिया था।

डगलस न केवल सर अडोल्फ़ का दायाँ हाथ था परन्तु भारत की खुफिया संस्था आई एस सी (इंडियन सीक्रेट कोर) का एजेंट भी था। उसे जेल से निकालना जरूरी था और एक ही एजेंट इस काम को अंजाम दे सकती थी। रीमा भारती!! इसके इलावा उसे निर्देश थे कि उसे सर अडोल्फ़ की मदद भी करनी थी।

रीमा भारती मिशन पर निकल चुकी थी। ये सब करना इतना आसान नहीं था क्योंकि मडलैंड की सेना अडोल्फ़ के समर्थकों को बंदी बना रही थी।

क्या वो डगलस को छुड़ा पायी? क्या वो सर अडोल्फ़ की मदद कर पायी?



update 1




धप्प ।





कच्ची जमीन और मेरे कदमों के संगम से हल्की-सी आवाज उत्पन्न हुई थी और फिर पैराशूट से बंधी में दूर तक धिसटती चली गई थी ।





बो वायुसेना का टूसीटर विमान था, जिससे मैंने अभी अभी नीचे जम्प लगाई थी ।





अचानक ।





वातावरण में एक जबरदस्त धमाका गूंजा । में समझ गई से, एक बार फिर विमान को गिराने की चेष्टा की गई थी । जब मैं विमान, में सवार थी तब भी उसे गिराने का भरपूर प्रयास किया गया था ।





किन्तु विमान के पायलेट बाला सुन्दरम ने बडी दक्षता का परिचय देते हुए विमान को बचा लिया था ।





मैं जानती थी कि बाला सुन्दरम ने जिस तेजी से बिमान नीचे किया था, लगभग उसी तेजी ने उपर उठाया होगा और फिर जैसा कि पहले से ही तय था, वो वहां से रफूचक्कर हो गया होगा ।





इस बात का अंदाज मैँने इस बात से लगाया कि मेरे जमीन पर गिरने तक उसके इंजन की आवाज गायब हो चुकी थी ।





मैंने उठकर पैराशूट से मुक्ति पाई ।





उसी क्षण मानो मेरे ऊपर मुसीबत टूट पडी ।





एकाएक कई जोडी हाथों ने मजबूती के साथ मुझे दबोच लिया ।





हड़बड़ाकर रह गई मैं ।





मुझे दबोचंने बाले वे लोग तो जैसे मेरे उठने और पैराशूट से मुक्ति पाने का इन्तजार कर रहे थे ।





कौन थे वे ?








उस बियाबान में क्या कर रहे थे ?





पलक झपकते ही ऐसे कईं सवाल मेरे जेहन में कौंध गये थे ।





वहां सन्नाटा था । मौत जैसा सन्नाटा । सन्नाटे के साथ चारों तरफ पूर्ण अंधकार था । काजल-सा स्याह अंधकार, जिसे मानो उंगली से ही छुआ जा सके । ऐसे में कुछ भी कर पाना सम्भव नहीं था । अत: मैं उन लोगो के चेहरे तक नहीं देख पा रही थी । किन्तु उन लोगों के बारे में जानना मेरे लिये जरूरी हो गया था । दूसरे उनसे पीछा भी छुड़ाऩा था । फिलहाल मेरे लिये ऐसा कर पाना मुश्किल लग रहा था ।





"कौन हो तुम?" मैं उनकी गिरफ्त से निकलने का प्रयास करती हुई बोली…" और तुम लोगों की इस हरकत का मतलब क्या हैं ?"





"मतलब भी समझा देगे ।" पीछे से एक गुर्राहट पूर्ण स्वर मेरे कानों से टकराया----"पहले शराफत से हमारे साथ चलो ।"





मैं खामोश हो गई । फिलहाल उनका हुक्म बजा लाने के अलावा मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था ।





वे लोग मुझे करीब-करीब घसीटते हुए एक तरफ बढे ।





मैं समझ गई कि उन लोगों का इरादा मुझे लूटने अथवा मेरे साथ कोई गलत हरकत करने का नहीं था ।





"इसे कहां ले चलना है?" उनमें से एक ने पूछा ।





"कमाण्डर के पास ले चलो ।" दूसरे ने उत्तर दिया ।





अब सब कुछ आइने की तरह साफ था । मुझे अंदाजा लगाने में एक क्षण से ज्यादा नहीं लगा था कि इस वक्त आर्मी के एरिया में थी और वे लोग सेनिक थे । उन्होंने मुझे विमान से पैराशूट की मदद से नीचे कूदते देख लिया था । संयोग से वे उसी जगह के आस-पास कही मौजूद थे, जहां मैं गिरी थी । इसलिये मैं फोरन उनके हत्थे चढ़ गई थी ।





"कोई गलत हरकत करने की कोशिश मत करना ।" उनमें से एक के होठों से भेड्रिये जैसी गुर्राहट निकली---"वरना अंजाम बहुत बुरा होगा ।"





मैं चुप रही ।





मेरा गलत हरकत करने का इरादा कत्तई नहीं था । मैं जानती थी कि इस वक्त मेरी कोई भी गलत हरकत उल्टा मेरे लिये खतरनाक साबित हो सकती थी ।





मैं खामोशी के साथ चलती रही ।





कुछं देर बाद वे सैनिक मुझे जिस जगह लेकर पहुचे, वहां पर्याप्त उजाला था । वहां एक जोंगा, खड़ा था ।





वे संख्या में चार थे ।





चारों के कन्धों पर रायफलें लटकी हुई थी । चारों के चेहरे इस बात की चुगली खा रहे थे, अगर मैंने कोई भी हरकत की तो पलक झपकते ही उनकी रायफल कंधों से उतरकर उनके हाथों में आ सकती थी और वे मुझे शूट करने में जरा भी हिचकिचाने वाले नही थे ।





"इसे जोंगे में बिंठाओ !" उनमें से एक अपने साथियों को सम्बोधित करके आदेश पूर्ण स्वर में बोला ।





"चलो ।" पीछे से एक मेरे नितम्बों पर बूट की ठोकर जडता हुआ गुरोंया ।





ठोकर इतनी जबरदस्त थी कि मैं बिलबिला उठी ।





मुझे उस सेनिक की इस हरकत पर गुस्सा तो वहुत आया, किन्तु फिलहाल दांत पीसकर रह जाने के अलावा और कुछ भी नहीं कर सकी थी ।





मैँ आगे बढकर जोंगे के करीब पहुंची ।





तभी ।





उनमें से एक सेनिक ने मेरे हाथ पीठ पीछे करके रेशम की मजबूत डोरी से जकढ़ दिये, फिर मुझे जोगे में बिठा दिया गया ।





उसमें पहले से ही दो सेनिक मौजूद थे।





वे चारों भी जोगे में बैठ गये ।





जोंगा चल पड़ा ।





मेरी स्थिति अजीब थी । मेरे हाथ पीठ पीछे मंजबूती से बधे हुए थे । दो सैनिकों की रायफलों की नाले मेरे जिस्म से चिपकी हुई थीं । मैं चाहकर भी कोई हरकत नहीं कर सकती थी । जोंगे का वो हिस्सा चारों तरफ से बन्द था । इसलिये मुझे बाहर का कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था ।





"तुम लोग मुझे कहां ले जा रहे हो?" एकाएक में बोल उठी ।





"सवाल नहीं ।" मेरे दायीं तरफ बैठा सैनिक गुर्राया ।





"क्यों?"





"खामोश ।" इस बार दूसरा सैनिक दहाड़ा । मैंने होंठ भींच लिये ।





मैंने ये सोचकर सब्र कर लिया- शीघ्र ही सब कुछ मेरे सामने आ जायेगा । इसलिये सैनिकों से सिर मारना बेकार है । वे तो पहले ही मुझसे जैसे खार खाये बैठे थे ।





मैंने सीट को पुश्त से पीठ सटाकर आँखे बन्द कर ली ।


मै फस चुकी थी । आगे पता नही मुझ पर क्या गुजरने वाली थी ? मेरे वर्तमान मिशन की शुरुआत ही खराब हुई थी ।।





मेरे जिस्म को एक तेज झटका लगा था । मैंने


पहले आंखें खोल दीं और एक झटके से सीधी


होकर बैठ गई । जोगा रुक चुका था । जोगे का पिछला दरवाजा खुला । अगले क्षण


उसमें से एक एक करके सैनिक नीचे कूदने लगे


। जब सारे सैनिक नीचे उतर चुके तो उनमें से


एक मुझे घूरता हुआ कर्कश स्वर में


बोला-"नीचे उतरो ।" मैँ शराफत के साथ नीचे को उतर गई । फिर वे मुझे घेरकर आगे बढे । मैंने धुमाकर चारों तरफ का मुआयना किया ।


वह काफी लंम्बी-चौडी खुली जगह थी ।


उसमें जगह-जगह कैम्प लगे हुए थे । एक तरफ


ऊची ऊंची पहाडियों का सिलसिला दूंर


तक चला गया था । दूसरी तरफ बैरक्स बनी हुई


थीं । वहां एक दर्जन के आसपास फौजी जीपें खडी नजर जा रहीं थीं । हैलीपेड पर कई


हैलीकॉप्टर शान से सिर ऊंचा किये खड्रे थे,


जगह-जगह सिक्योरिटी का तगड़ा प्रबन्ध्र


था । चारों तरफ पर्याप्त प्रकाश फैला हुआ था । वे मुझे लेकर अपने कमाण्डर के पास पहुचे। यह एक छ फुट से भी ऊपर निकलते कद और


मज़बूत जिस्म वाला शख्स था । उम्र


पैतालिस साल के आसपास रही होगी । रंग


कश्मीरी सेब जैसा था । बडी-बडी मूंछें । चेहरे


पर पत्थर जैसी कठोरता और आँखे यूं सुर्ख


नजर आ रहीँ थीं, मानो वहां दो अंगारे सुलग रहे हीं । "ये लड़की कौन है?" कमाण्डर ने सैनिकों से


सबाल किया । " इसके बारे में हम कुछ नहीं जानते सर ।" एक


सेनिक ने जवाब दिया----"ये कुछ देर पहले


एक विमान से पैराशूट द्वारा नीचे कूदी थी ।


हम इसे पकडकर आपके पास ले आये ।" कमाण्डर के चेहरे के भाव तेजी से बदले, फिर


बह मुझे उपर से नीचे तक घूरता हुआ


गुर्राया----" कौन हो तुम?" इस परिस्थिति में भी मैं अपनी आदत से


बाज नहीं आई--: "एक लडकी हूं" |





"वो तो मैं देख सा हू। मैंने तुम्हारा नाम पूछा है


।" "डियाना ।" "इस तरह आर्मी एरिया में विमान से कूदने


का तुम्हारा क्या मकसद है?" उसने सवाल


किया । "भला एक लड़की का इतनी रात में आर्मी


एरिया में कूदने का क्या मकसद हो सकता है?"


मैं पूरी दिठाई से बोली । "सवाल मैंने क्रिया है । जवाब दो ।" "बात दरअसल ये है कमाण्डर कि मैं विमान


से पैराशूट से जमीन पर कूदने का प्रशिक्षण


ले रहीँ हूं । मेरा विमान भटककर इस तरफ आ


गया और मुझे नहीं मालूम था कि मैं जिस


जगह कूद रही हू । बो आर्मी का एरिया है,


वरना मुझसे ये गलती कभी नहीं होती ।" मैंने पहले से गढ़कर तैयार की गई कहानी कमाण्डर


को सुना दी । इस वक्त मैं मेकअप में थी और


एक विदेशी बाला नजर आ रही थी । कमाण्डर की ब्लेड की धार जैसी पैनी


निगाहें मेरे सुखे-श्वेत चेहरे पर फिक्स होकर


रह गई । उसके देखने का अंदाज बता रहा था


कि मानो वह मेरे चेहरे से सच जानने का


प्रयास का रहा हो । किन्तु मैं शर्त लगाकर कह सकती हूं कि उसे


मेरे चेहरे पर ऐसा कोई भाव नजर नहीं आया


होगा । " तुम कहानी तो अच्छी गढ लेती हो लड़की


।" एकाएक उसके होठों पर जहरीली मुस्कान


नाच उठी । " ये कहानी नहीं है कमाण्डर, बल्कि


हकीकत है ।" मैंने एकएक शब्द पर जोर देते हुए


कहा । मेरे होठों से निकला ही था कि


कमाण्डर का भारी-भरकम हाथ तेजी से हवा में


घूमा और उसकी चौडी हथेली झन्नाटेदार


थप्पड़ की शक्ल मैं मेरे कोमल गाल से टकराई । "तड़ाक… !" थप्पड़ इतना ताकतवर था कि मेरा समूचा


चेहरा झनझना उठा और मेरा सिर फिरकनी


की मानिन्द गर्दन पर घूम गया । आंखों से


आँसू उबल पड़े । यकीनन मैं बेहोश होते-हीते बची थी । "कमाण्डर ।" मेरे होठों से निकला । "खामोश." वो दहाड़ा । मैंने अपने होंठ र्मीच लिये । चारों सैनिक अजीब निगाहों से मुझे देख रहे


थे । "तुम क्या समझती हो कि मैं तुम्हारी इस


बकवास पर यकीन कर लूंगा !" उसने गुस्से से


दांत पीसे ।





"तुम्हें मेरी बात बकवास लग रही है ।" "सरासर बकवास लग रही हैं। मैं सच जानना


चाहता हूं।" "सच यही है ।" "फिर बकवास? जबकि सच ये है कि या तो


तुम कोई जासूस हो, या फिर राष्ट्रपति सर


एडलॉंफ की कोई कट्टर समर्थक, जो जानबूझ


कर किसी खास मकसद से आर्मी एरिया में


घुसी हो ।" " मेरे मेहरबान दोस्तों सच तो ये था कि मैं


जानबूझकर आर्मी एरिया में नहीं कूदी थी ।


मेरा एकमात्र मकसद सिर्फ चोरी-छिपे


मडलैण्ड नाम के इस मुल्क की सीमा में प्रवेश


करना…था । नक्शे के मुताबिक मुझे किसी


अन्य सुरक्षित जगह पर कूदना था । किन्तु रात के अंधेरे मे विमान की दिशा भटक जाने


से मैं इस जगह पर कूद गई थी । मुझे तो सपने


में भी गुमान नहीं था कि वो आर्मी एरिया


होगा । " तुम्हें गलतफहमी हो गई है कमाण्डर ।" मैंने


पूरी ठीठता से … . कहा…"मै न तो कोई जासूस


हू ओर न ही किसी राष्ट्रपति से मेरा कुछ


लेना-देना है । मैं तो सर एडलॉंफ का नाम भी


तुम्हारे मुंह से पहली बार सुन रही हू। मैं तो


एक साधारण युवती हूं।" " ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत


लड़की । तुम मुझे बेसिर-पेर की कहानी


सुनाकर बेवकूफ नहीं वना सकती । मेरा नाम


कमाण्डर बरनाड है । मैं उड़ते हुए पक्षी के पर


गिनने की कुव्वत रखता हूँ । अगर तुम अपनी


खैरियत चाहतीं हो तो सब कुछ सच सच बता दो, वरना अंजाम वहुत बुरा होगा ।" "मेरी बात का यकीन करों कमाण्डरा मैंने तुम्हें


जो कुछ बताया है, सच ही बताया है ।" मैंने


भोलेपन-से जवाब दिया । बरनाड के चेहरे पर मानो आग बरसने लगी ।


उसकी आँखे और भी ज्यादा सुर्ख हो उठी ।


होठों से गुर्राहट खारिज हुई---" क्या


समझती हो कि इतना कह देने से तुम्हारा


छुटकारा हो जायेगा । जब तक तुम सब कुछ


सच-सच नहीं बता देती, तब तक तो मैं तुम्हें मरने भी नहीं दूगा ।" मैं खामोश रहीं । क्षण भर ठहरकर बरनाड ने पुन: कहा---"' तुम


सोच रही हो कि तुम यहाँ से बचकर निकल


जाओगी तो ये तुम्हारी भूल है ।" मन हीं मन मुस्कृराई । वो बेचारा क्या जानता


था कि मेरा नाम रीमा भारती है । मैं तो सात


तालों के भीतर से भी हवा का झोका बन जाने


की हिम्मत रखती हूं ।





वह तो आर्मी एरिया से निकलने की बाते


कह रहा था, मुझे तो बस मौका मिलना


चाहिये, फिर उनके पास हाथ मलते रह जाने


के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचने वाला था


। "जवाब दो ।" कमाण्डर ने फिर यही राग


अलापा-"वरना तुम्हें इतनी यातनाएं दी


जायेंगी कि तुम्हारी आत्मा भी सच बोलने


पर मजबूर हो जायेगी । शायद तुम्हें नहीं


मालुम कि हम आर्मी बाले यातनाएं देने के ऐसे


भयानक तरीके जानते हैं कि हमारे सामने बेजुबान पत्थर भी गा-गाकर सब कुछ उगलं देते


हैं । तुम्हारी तो औकात क्या है?" "मैं तुम्हें कैसे समझाऊं कमाण्डर... ।“ वह मेरा वाक्य बीच में ही काटकर बोला…"मुझे


समझाओ मत । सिर्फ जवाब दो।" मैंने कंधे उचकाये। मेरी इस हरकत पर उसका पारा सातवें आसमान


पर पहुंच गया । परिणामस्वरूप उसने अपना


हाथ पुन: घुमा दिया । तड़ाक . . . इस बार उसका शक्तिशाली थप्पड़ मेरे दूसरे


गाल पर पड़ा था । मुझे ऐसा लगा मानो मेरा गाल


दहकते अंगारे में तब्दील हो गया हो । चेहरे परे


पीड़ा की असंख्य रेखाएं खिंचती चली गई,


लेकिन फिलहाल तो मुझे सब कुछ बर्दाश्त


करंना ही था । "मुझे क्यों मार रहे हो कमाण्डर?" मैं अपना


गाल सहलाती बोली ---- " क्या तुम इतना भी


नहीं जानते कि एक लडकी के साथ सलूक


किया जाता है?" "हम आर्मी वाले अपने दुश्मन कै साथ एक


जैसा ही सलूक करते हैं ।" उसके होठों से शब्द


नहीँ मानो आग बरसी । " अब मैं तुम्हारी दुश्मन हो ग़ई ।" "जो शख्स चोरी-छिपे आर्मी एरिया में घुस


आये । वो दुश्मन नहीं है तो क्या दोस्त


होगा?" मैं बेबसी से अपने दांतों से निचला होठ


कुचलकर रह गई । "ये ऐसे अपना मुंह नहीं खोलेगी । इसे टॉर्चर


बैरक में ले चलो ।" कमाण्डर सैनिकों को


सम्बोधित करके आदेश पुर्ण लहजे में


बोला-----"हमें हर कीमत पर इसकी


असलियत जाननी है ।" सैनिक मुझे रायफलों की नोक पर धकेलते हुए


टॉर्चर बैरक की तरफ़ बढे । मैं ससंझ गई कि अब मुझे यातनाओं के भयानक


दौर से गुजरना होगा । अत: मैं स्वयं को


यातनाएं सहने के लिये मानसिक रूप से तैयार


करने लगी ।


आगे क्या हुआ? रीमा को कैसी यातनाएं दी गई? क्या रीमा बच पायी? जानने के लिए पढ़िए अगले अपडेट जो जल्दी ही इसी ब्लॉग पर आपको मिलेंगे। अपनी राय कमैंट्स में जरूर दीजिये।

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